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आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15535
आईएसबीएन :0

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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

14

सुमंगली


पाँचवी क्रिया विवाह-दिवसोत्सव की 'सुमंगली है। पति पत्नी को और पत्नी पति को तिलक लगाती है। पति द्वारा पत्नी की माँग में सिन्दूर भरना उसके सुहाग को सफल एवं सार्थक बनाने के आश्वासन के रूप में होता है। पति इस क्रिया द्वारा यह आश्वासन देता है कि उसका सौभाग्य सिन्दूर निरर्थक सिद्ध न होगा। पत्नी को यह पश्चात्ताप न करना पड़ेगा कि ऐसे निखट्‌टू पति की अपेक्षा तो अविवाहित रहना ही अच्छा था। वह भार नहीं सहारा बनेगा। दबाने या सताने में नहीं वरन् हँसाने और उठाने में विवाह की सार्थकता है।

इस प्रथा का दूसरा रूप एक-दूसरे के मस्तक पर तिलक करने का भी है। पति केवल पत्नी के तिलक करे इतना ही पर्याप्त नहीं है वरन् यह भी उचित है कि पत्नी भी पति के मस्तक पर तिलक करे। तिलक नीचे से ऊपर की ओर लकीर खींच कर किया जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि मानसिक स्तर को ऊपर की ओर उठाने का प्रयास होना चाहिए। किसी का वास्तविक उत्थान-पतन उसकी भावना एवं आकांक्षा का ऊंचा या नीचा होने में ही है। पति-पत्नी में से हर एक का यह प्रयत्न होना चाहिए कि वह अपने साथी को किसी प्रलोभन या भय के कारण निकृष्ट मार्ग पर चल पड़ने की दुर्बलता में पड़ने से बचाये। कठिनाइयों रहकर भी धर्म- कर्तव्य और औचित्य को अपनाये रहने की हिम्मत बढ़ाता रहे।

मस्तिष्कीय ज्ञान, शिक्षा विवेक, अनुभव एवं जानकारी की बढ़ोतरी भी मानसिक शक्ति के विकास का एक प्रकार है। दोनों में से जो भी अधिक ज्ञानवान् है उसे चाहिए कि साथी को वह अवसर दे जिससे उसे अपना मानसिक स्तर कम से कम उतना ही अन्यथा और भी अधिक विकसित करने की सुविधा प्राप्त कर सकना सम्भव हो जाय। सुमंगली क्रिया के अवसर पर किया गया तिलक इसी प्रेरणा का प्रतीक माना गया है।

उपरोक्त पाँचों क्रियाओं को करते हुए उपरोक्त आधार पर विस्तृत व्याख्या विवेचनायें की जानी चाहिए। जिनका विवाह-दिवसोत्सव मनाया जा सकता है उनके दाम्पत्य-जीवन में क्या कमियाँ है उनका पता लगाने का प्रयत्न करना चाहिए और उन अभावों की पूर्ति के संबंध में रचनात्मक उपाय प्रस्तुत करने चाहिए। यह सब कहने में रचनात्मक दृष्टि से एवं सामान्य विवेचना के ढंग से कहा जाना चाहिए अन्यथा जिसकी त्रुटि बताई जा रही होगी वह अपनी उस बात को प्रकट होने और सबके सामने हेय बात ठहराये जाने की बात सोचकर वक्ता पर कुपित होगा और सुधारने की अपेक्षा और अधिक चिढ़ जायगा। यह भूल किसी प्रवक्ता को नहीं करनी चाहिए। कहना इस ढंग के चाहिए कि न तो किसी का भेद खुले और न भर्त्सना प्रतीत हो। सुधारने का कार्य बड़ा कठिन है समझाने के ढंग में समुचित प्रेम, आत्मीयता प्रतीक्षा, प्रोत्साहन की मात्रा है तभी उससे किसी के सुधरने की आशा की जा सकती है। इस उत्सव का उद्‌देश्य जीवन में अधिक मधुरता उत्पन्न करना तथा विकृतियों का समाधान करना है इसलिए प्रशिक्षण इस ढंग से होना चाहिए कि किसी को कटु, मर्मभेदी प्रतीत न हो। अपनी भूल बताने पर आमतौर से लोग रुष्ट होते, चिढ़ते तथा अपमान अनुभव करते है। इस मानवीय मनोवैज्ञानिक दुर्बलता का ध्यान रखते हुए जब जो कहा समझाया जायगा वह अवश्य प्रभावशाली सिद्ध होगा।

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    अनुक्रम

  1. विवाह प्रगति में सहायक
  2. नये समाज का नया निर्माण
  3. विकृतियों का समाधान
  4. क्षोभ को उल्लास में बदलें
  5. विवाह संस्कार की महत्ता
  6. मंगल पर्व की जयन्ती
  7. परम्परा प्रचलन
  8. संकोच अनावश्यक
  9. संगठित प्रयास की आवश्यकता
  10. पाँच विशेष कृत्य
  11. ग्रन्थि बन्धन
  12. पाणिग्रहण
  13. सप्तपदी
  14. सुमंगली
  15. व्रत धारण की आवश्यकता
  16. यह तथ्य ध्यान में रखें
  17. नया उल्लास, नया आरम्भ

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